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फणीश्वर नाथ रेणु मारे गए गुलफ़ाम उर्फ़ तीसरी कसम

फणीश्वर नाथ रेणु मारे गए गुलफ़ाम उर्फ़ तीसरी कसम

मीनाबाजार! मीनाबाजार तो पतुरिया-पट्टी को कहते हैं। क्या बोलता है यह बूढ़ा मियाँ? लालमोहर ने हिरामन के कान में फुसफुसाकर कहा, ''तुम्हारी देह मह-मह-महकती है। सच!''

लहसनवाँ लालमोहर का नौकर-गाड़ीवान है। उम्र में सबसे छोटा है। पहली बार आया है तो क्या? बाबू-बबुआइनों के यहाँ बचपन से नौकरी कर चुका है। वह रह-रहकर वातावरण में कुछ सूँघता है, नाक सिकोड़कर। हिरामन ने देखा, लहसनवाँ का चेहरा तमतम गया है। कौन आ रहा है धड़धड़ाता हुआ?, ''कौन, पलटदास? क्या है?''

पलटदास आकर खड़ा हो गया चुपचाप। उसका मुँह भी तमतमाया हुआ था। हिरामन ने पूछा, ''क्या हुआ? बोलते क्यों नहीं?''
क्या जवाब दे पलटदास! हिरामन ने उसको चेतावनी दे दी थी, गपशप होशियारी से करना। वह चुपचाप गाड़ी की आसनी पर जाकर बैठ गया, हिरामन की जगह पर। हीराबाई ने पूछा, ''तुम भी हिरामन के साथ हो?'' पलटदास ने गरदन हिलाकर हामी भरी। हीराबाई फिर लेट गई। चेहरा-मोहरा और बोली-बानी देख-सुनकर, पलटदास का कलेजा काँपने लगा; न जाने क्यों। हाँ! रामलीला में सिया सुकुमारी इसी तरह थकी लेटी हुई थी। जै! सियावर रामचंद्र की जै! पलटदास के मन में जै-जैकार होने लगा। वह दास-वैस्नव है, कीर्तनिया है। थकी हुई सीता महारानी के चरण टीपने की इच्छा प्रकट की उसने, हाथ की उँगलियों के इशारे से; मानो हारमोनियम की पटरियों पर नचा रहा हो। हीराबाई तमककर बैठ गई, ''अरे, पागल है क्या? जाओ, भागो!''

पलटदास को लगा, गुस्साई हुई कंपनी की औरत की आँखों से चिनगारी निकल रही है-छटक्, छटक्! वह भागा।
पलटदास क्या जवाब दे! वह मेला से भी भागने का उपाय सोच रहा है। बोला, ''कुछ नहीं। हमको व्यापारी मिल गया। अभी ही टीसन जाकर माल लादना है। भात में तो अभी देर हैं। मैं लौट आता हूँ तब तक।''

खाते समय धुन्नीराम और लहसनवाँ ने पलटदास की टोकरी-भर निन्दा की। छोटा आदमी है। कमीना है। पैसे-पैसे का हिसाब जोड़ता है। खाने-पीने के बाद लालमोहर के दल ने अपना बासा तोड़ दिया। धुन्नी और लहसनवाँ गाड़ी जोतकर हिरामन के बासा पर चले, गाड़ी की लीक धरकर। हिरामन ने चलते-चलते रुककर, लालमोहर से कहा, ''जरा मेरे इस कंधे की सूँघो तो। सूँघकर देखो न?''

लालमोहर ने कंधा सूँघकर आँखे मूँद लीं। मुँह से अस्फुट शब्द निकला, ''ए, ह!''
हिरामन ने कहा, ''जरा-सा हाथ रखने पर इतनी खुशबू! समझे!'' लालमोहर ने हिरामन का हाथ पकड़ लिया, ''कंधे पर हाथ रखा था, सच? सुनो हिरामन, नौटंकी देखने का ऐसा मौका फिर कभी हाथ नहीं लगेगा। हाँ!''
''तुम भी देखोगे?'' लालमोहर की बत्तीसी चौराहे की रोशनी में झिलमिला उठी।
बासा पर पहुँचकर हिरामन ने देखा, टप्पर के पास खड़ा बतिया रहा है कोई, हीराबाई से। धुन्नी और लहसनवाँ ने एक ही साथ कहा, '' कहाँ रह गए पीछे? बहुत देर से खोज रही है कंपनी!''

हिरामन ने टप्पर के पास जाकर देखा- अरे, यह तो वही बक्सा ढोनेवाला नौकर, जो चंपानगर मेले में हीराबाई को गाड़ी पर बिठाकर अँधेरे में गायब हो गया था।

''आ गए हिरामन! अच्छी बात, इधर आओ। यह लो अपना भाड़ा और यह लो अपनी दच्छिना! पच्चीस-पच्चीस, पचास।''
हिरामन को लगा, किसी ने आसमान से धकेलकर धरती पर गिरा दिया। किसी ने क्यों, इस बक्सा ढोनेवाला आदमी ने। कहाँ से आ गया? उसकी जीभ पर आई हुई बात जीभ पर ही रह गई इस्स! दच्छिना! वह चुपचाप खड़ा रहा।

हीराबाई बोली, ''लो पकड़ो! और सुनो, कल सुबह रौता कंपनी में आकर मुझसे भेंट करना। पास बनवा दूँगी। ब़ोलते क्यों नहीं?''
लालमोहर ने कहा, ''इलाम-बकसीस दे रही है मालकिन, ले लो हिरामन! हिरामन ने कटकर लालमोहर की ओर देखा। ब़ोलने का जरा भी ढंग नहीं इस लालमोहरा को।

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