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फणीश्वर नाथ रेणु मारे गए गुलफ़ाम उर्फ़ तीसरी कसम

फणीश्वर नाथ रेणु मारे गए गुलफ़ाम उर्फ़ तीसरी कसम

पलटदास ने हाथ मलते हुए माफी माँगी, ''कसूरबार हैं; जो सजा दो तुम लोग, सब मंजूर है। लेकिन सच्ची बात कहें कि सिया सुकुमारी।''
हिरामन के मन का पुरइन नगाड़े के ताल पर विकसित हो चुका है। बोला, ''देखो पलटा, यह मत समझना कि गाँव-घर की जनाना है। देखो, तुम्हारे लिए भी पास दिया है; पास ले लो अपना, तमासा देखो।''
लालमोहर ने कहा, ''लेकिन एक सर्त पर पास मिलेगा। बीच-बीच में लहसनवाँ को भी।''
पलटदास को कुछ बताने की जरूरत नहीं। वह लहसनवाँ से बातचीत कर आया है अभी।
लालमोहर ने दूसरी शर्त सामने रखी, ''गाँव में अगर यह बात मालूम हुई किसी तरह!''
''राम-राम!'' दाँत से जीभ को काटते हुए कहा पलटदास ने।
पलटदास ने बताया- ''अठनिया फाटक इधर है!'' फाटक पर खड़े दरबान ने हाथ से पास लेकर उनके चेहरे को बारी-बारी से देखा, बोला, ''यह तो पास है। कहाँ से मिला?''

अब लालमोहर की कचराही बोली सुने कोई! उसके तेवर देखकर दरबान घबरा गया- ''मिलेगा कहाँ से? अपनी कंपनी से पूछ लीजिए जाकर। चार ही नहीं, देखिए एक और है।'' जेब से पाँचवा पास निकालकर दिखाया लालमोहर ने।

एक रुपयावाले फाटक पर नेपाली दरबान खड़ा था। हिरामन ने पुकारकर कहा, ''ए सिपाही दाजू, सुबह को ही पहचनवा दिया और अभी भूल गए?''
नेपाली दरबान बोला, ''हीराबाई का आदमी है सब। जाने दो। पास हैं तो फिर काहे को रोकता है?''
अठनिया दर्जा!

तीनों ने 'कपड़घर' को अंदर से पहली बार देखा। सामने कुरसी-बेंचवाले दर्जे हैं। परदे पर राम-बन-गमन की तसवीर है। पलटदास पहचान गया। उसने हाथ जोड़कर नमस्कार किया, परदे पर अंकित रामसिया सुकुमारी और लखनलला को। ''जै हो, जै हो!'' पलटदास की आँखें भर आई।

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हिरामन ने कहा, ''लालमोहर, छापी सभी खड़े हैं या चल रहे हैं?''
लालमोहर अपने बगल में बैठे दर्शकों से जान-पहचान कर चुका है। उसने कहा, ''खेला अभी परदा के भीतर है। अभी जमिनका दे रहा है, लोग जमाने के लिए।''

पलटदास ढोलक बजाना जानता है, इसलिए नगाड़े के ताल पर गरदन हिलाता है और दियासलाई पर ताल काटता है। बीड़ी आदान-प्रदान करके हिरामन ने भी एकाध जान-पहचान कर ली। लालमोहर के परिचित आदमी ने चादर से देह ढकते हुए कहा, ''नाच शुरू होने में अभी देर है, तब तक एक नींद ले लें। सब दर्जा से अच्छा अठनिया दर्जा। सबसे पीछे सबसे ऊँची जगह पर है। जमीन पर गरम पुआल! हे-हे! कुरसी-बेंच पर बैठकर इस सरदी के मौसम में तमासा देखनेवाले अभी घुच-घुचकर उठेंगे चाह पीने।''

उस आदमी ने अपने संगी से कहा, ''खेला शुरू होने पर जगा देना। नहीं-नहीं, खेला शुरू होने पर नहीं, हिरिया जब स्टेज पर उतरे, हमको जगा देना।''

हिरामन के कलेजे में जरा आँच लगी। हिरिया! बड़ा लटपटिया आदमी मालूम पड़ता है। उसने लालमोहर को आँख के इशारे से कहा, ''इस आदमी से बतियाने की जरूरत नहीं।''

घन-घन-घन-धड़ाम! परदा उठ गया। हे-ए, हे-ए, हीराबाई शुरू में ही उतर गई स्टेज पर! कपड़घर खचमखच भर गया है। हिरामन का मुँह अचरज में खुल गया। लालमोहर को न जाने क्यों ऐसी हँसी आ रही है। हीराबाई के गीत के हर पद पर वह हँसता है, बेवजह।

 

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