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सूरदास

सूरसागर

परिशिष्ट (ख) अंतर्कथाएँ

सिंधु-सुता

लक्षमी जो समुद्रमंथन के समय निकले हुए 14 रत्नों में से एक थीं |

सुक

शुक, शुकदेव- व्यास के पुत्र, महान् पौराणिक कथाकार, जिन्होंने परीक्षित को `भागवत'
की कथा सुनाई थी | जिस समय शिव जी एकांन्त में उमा को विष्णुसहस्त्रनाम सुना रहे
थे, एक शुक भी उसे सुन रहा था | शिवजी ने जब यह जाना तो वे शुक को मारने दौड़े |
शुक आत्म-रक्षार्थ व्यास पत्नी के मुख में चला गया और 12 वर्ष तक उनके गर्भ में रहा
| इस बीच वेदव्यास ने भागवतादि की समस्त कथाएँ अपनी पत्नी को सुनाई | शुक भी सुनता
रहा | भगवान ने इसे गर्भ में ही तत्वज्ञानी और मायारहित होने का वरदान दिया था | जो
कथा व्यास ने शुकदेव को सुनाई, वही शुकदेव से परीक्षत ने सुनी |

सुदामा

गुरु साँदीपिनि के यहाँ श्रीकृष्ण के सहपाठी, उनके एक प्रसिद्ध बालसखा, जो एक
अत्यन्त दरिद्र ब्राह्मण थे | पत्नी के बार बार कहने पर वे अपनी दारुण दरिद्रता दूर
करने की आशा में श्रीकृष्ण के यहाँ द्वारकापुरी गए | मित्र को भेंट देने के लिए वे
केवल थोड़े से चावल ले जा सके थे, परन्तु वे उसे छिपा रहे थे | श्रीकृष्ण ने चावलों
की पोटली उनसे आग्रहपूर्वक छीन ली और उसमें से दो मुट्ठी चावल फाँक लिए |
तीसरी मुट्ठी भरते समय रुक्मिणी जी ने उन्हें रोक दिया | सुदामा जब लौटे तो सोचने
लगे कि किसी भलाई के लिए ही श्रीकृष्ण ने मुझे यथेष्ठ धन नहीं दिया | परन्तु जब
घर पहुँचे तो वे चकित हो गए | उनके यहाँ अपार वैभव हो गया था | दो मुट्ठी
चाँवल फाँककर ही भगवान ने उन्हें लोक-परलोक की सब संपत्ति दे डाली थी |

 हरिश्चंद्र

सूर्यवंश के एक प्रसिद्ध सत्यप्रतिज्ञ राजा, जिनसे राजसूर्य-यज्ञ की
दक्षिणा के बहाने विश्वामित्र ने सर्वस्व हर लिया था | उनकी दृढ़ प्रतिज्ञा की सबसे
कठोर परीक्षा तब हुई जब वे एक चंडाल के क्रीतदास के रूप में श्मशान पर पहरा दे
रहे थे | उसी समय उनकी पत्नी शैव्या, जो एक ब्राह्मण को बेच दी गई थी, अपने
मृत पुत्र रोहिताश्व का अंतिम संस्कार करने आई | हरिश्चंद्र के श्मशान-कर माँगने पर
जब शैव्या ने अपनी असमर्थता प्रकट की, तो इन्होंने उसे कर के बदले में अपनी आधी
साड़ी फाड़कर देने के लिए विवश किया | इसी समय भगवान प्रकट हो गए |

 

 

National Record 2012

Most comprehensive state website
Bihar-in-limca-book-of-records

Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)

See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217