राग-बिलावल
जागियै गोपाल लाल, प्रगट भई अंसु-माल,
मिट्यौ अंधकाल उठौ जननी-सुखदाई |
मुकुलित भए कमल-जाल, कुमुद-बृंदबन बिहाल,
मेटहु जंजाल, त्रिबिध ताप तन नसाई ||
ठाढ़े सब सखा द्वार, कहत नंद के कुमार ,
टेरत हैं बार-बार, आइयै कन्हाई
गैयनि भइ बड़ी बार, भरि-भरि पय थननि भार ,
बछरा-गन करैं पुकार, तुम बिनु जदुराई ||
तातैं यह अटक परी, दुहन-काल सौंह करी,
आवहु उठि क्यौं न हरी, बोलत बल भाई |
मुख तैं पट झटकि डारि, चंद -बदन दियौ उघारि,
जसुमति बलिहारि वारि, लोचन-सुखदाई ||
धेनु दुहन चले धाइ, रोहिनी लई बुलाइ,
दोहनि मोहि दै मँगाइ, तबहीं लै आई
बछरा दियौ थन लगाइ, दुहत बैठि कै कन्हाइ,
हँसत नंदराइ, तहाँ मातु दोउ आई ||
दोहनि कहुँ दूध-धार, सिखवत नँद बार-बार,
यह छबि नहिं वार-पार, नंद घर बधाई |
हलधर तब कह्यौ सुनाइ, धेनु बन चलौ लिवाइ,
मेवा लीन्हौ मँगाइ, बिबिध-रस मिठाई ||
जेंवत बलराम-स्याम, संतन के सुखद धाम,
धेनु काज नहिं बिराम, जसुदा जल ल्याई |
स्याम-राम मुख पखारि, ग्वाल-बाल दिए हँकारि,
जमुना -तट मन बिचारि, गाइनि हँकराई ||
सृंग-बेनु-नाद करत, मुरली मधु अधर धरत,
जननी-मन हरत, ग्वाल गावत सुघराई |
बृंदाबन तुरत जाइ, धेनु चरति तृन अघाइ,
स्याम हरष पाइ, निरखि सूरज बलि जाई ||
भावार्थ :-- (माता कहती हैं-) गोपाल लाल! जागो, सूर्यकी किरणें दीखने लगीं, अन्धकार
मिट गया, माताको सुख देनेवाले लाल ! उठो | कमल-समूह खिल गये, कुमुदिनियोंका वृन्द
जलमें मलिन पड़ गया, (तुम उठकर) सब जंजाल दूर करो, (व्रजवासियोंके) शरीरके
तीनों (आधिदैविक,आधिभौतिक, आध्यात्मिक) कष्ट नष्ट कर दो | सब सखा द्वारपर खड़े हैं,
वे बार-बार पुकारकर कह रहे हैं-`नन्दलाल ! कन्हाई ! आओ, गायों को बड़ी देर हो गयी,
उनके थन दूधके भारसे बहुत भर गये हैं, यदुनाथ ! तुम्हारे बिना बछडों का समूह भी
(दूध पीने के लिये) पुकार कर रहा है | यह रुकावट इसलिये पड़ गयी है कि दुहते समय
तुमने शपथ दिला दी (कि मेरे आये बिना गायें मत दुहना)| तुम्हारे भैया बलराम बुला
रहे हैं--`श्यामसुन्दर! उठकर आते क्यों नहीं हो ?' (यह सुनकर मोहनने) मुखसे झटककर
वस्त्र दूर कर दिया, चन्द्रमुख खोल दिया | माता यशोदाके नेत्रोंको बड़ा सुख मिला,
माताने जल न्यौछावर किया (और पी लिया) (श्याम) दौड़कर गाय दुहने चले और माता
रोहिणीको बुलाया -`मुझे दोहनी मँगा दो |' तभी माता (दोहनी) ले आयीं | बछड़ेको
थनसे लगा दिया, कन्हाई बैठकर दूध दुहने लगे, व्रजराज नन्दजी (खड़े) हँस रहे हैं,
वहाँ दोनों माताएँ भी आ गयीं | कहीं दोहनी है और कहीं दूधकी धार जाती है, नन्दजी
बार-बार सिखला रहे हैं,
इस शोभाका कोई अन्त नहीं है, श्रीनन्दजीके घरमें बधाई बज रही है | तब बलरामजीने
सम्बोधन करके कहा--`गायें वनको ले चलो |' मेवा और अनेक प्रकार के स्वादवाली
मिठाइयाँ मँगा लीं | सत्पुरुषोंके आनन्दधाम श्रीश्याम और बलराम भोजन कर रहे हैं,
किंतु गायोंके लिये (गायोंकी चिन्तासे) उन्हें अवकाश नहीं है | माता यशोदा जल ले
आयीं, बलराम-श्यामने मुख धोकर गोप-बालकोंको पुकार लिया, यमुना-किनारे जाने की
इच्छा करके गायोंको हँकवा दिया | सब शृंग और वेणु (बाँसकी नली) का शब्द करते हैं,
अधरोंपर वंशी रखकर मधुर ध्वनिमें बजाते हुए माताका चित्त हरण करते हैं, गोप-बालक
सुघराई राग गा रहे हैं | तत्काल वृन्दावन जाकर गायें संतुष्ट होकर घास चर रही हैं,
श्यामसुन्दर इससे हर्षित हो रहे हैं | यह शोभा देखकर सूरदास बलिहारी जाता है |
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217