राग रामकली
आजु मैं गाइ चरावन जेहौं |
बृंदाबन के बाँति-भाँति फल अपने कर मैं खेहौं ||
ऐसी बात कहौ जनि बारे, देखो अपनी भाँति |
तनक-तनक पग चलिहौ कैसैं, आवत ह्वै हैं राति ||
प्रात जात गैया लै चारन, घर आवत हैं साँझ |
तुम्हरौ कमल-बदन कुम्हिलैहै, रेंगत घामहिं माँझ ||
तेरी सौं मोहि घाम न लागत, भूख नहीं कछु नेक |
सूरदास-प्रभु कह्यौ न मानत, पर्यौ आपनी टेक ||
भावार्थ :-- `आज मैं गाय चराने जाऊँगा | वृन्दावनके अनेक प्रकारके फलोंको
अपने हाथों (तोड़कर) खाऊँगा |' (माता बोलीं-)`मेरे लाल ! ऐसी बात मत कहो ! अपनी
(शक्तिकी) ओर तो देखो, तुम्हारे पैर अभी छोटे-छोटे हैं, (वनमें कैसे चलोगे ? (घर
लौटकर) आनेमें रात्रि हो जायगी | (गोप तो) सबेरे गाये चराने ले जाते हैं और सन्ध्या
होनेपर घर आते हैं | तुम्हारा कमलमुख धूपमें घूमते-घूमते म्लान हो जायगा |' (श्याम
बोले-)`तेरी शपथ ! मुझे धूप लगती ही नहीं और थोड़ी भी भूख नहीं है |' सूरदासजी
कहते हैं कि मेरे स्वामी ने अपनी हठ पकड़ रखी है, वे (किसीका) कहना नहीं मान रहे
हैं |
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See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217