तनक कनक खी दोहनी, दै-दै री मैया ||
तात दुहन सीखन कह्यौ, मोहि धौरी गैया ||
अटपट आसन बैठि कै, गो-थन कर लीन्हौ |
धार अनतहीं देखि कै, ब्रजपति हँसि दीन्हौ ||
घर-घर तैं आईं सबै, देखन ब्रज-नारी |
चितै चतुर चित हरि लियौ, हँसि गोप-बिहारी ||
बिप्र बोलि आसन दियौ, कह्यौ बेद उचारी |
सूर स्याम सुरभी दुही, संतनि हितकारी ||
भावार्थ :-- (मोहन बोले--) `मैया री ! मुझे सोने की दोहनी तो दे दे | बाबा ने मुझे
धौरी (कपिला गायको दुहना सिखाने के लिये कहा है |' (दोहनी लेकर गोष्ठमें गये)
अटपटे आसन से बैठकर गायका थन हाथमें लिया; किंतु (दूधकी) धार (बर्तनमें न पड़कर)
अन्यत्र पड़ते देख व्रजराज हँस पड़े | घर-घरसे व्रजकी स्त्रियाँ (मोहनका गाय दुहना)
देखने आयीं | उनकी ओर देखकर हँसकर गोपोंमें क्रीड़ा करनेवाले श्यामने उनका चित्त
हरण कर लिया | (व्रजराजने) ब्राह्मणों को बुलाकर आसन दिया और उनसे वेदोच्चारण
(स्वस्तिपाठ) करने की प्रार्थना की | सूरदासजी कहते हैं कि सत्पुरुषोंका मंगल करने
वाले श्यामसुन्दरने आज गाय दुहा |
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217