राग रामकली
जसोदा ऊखल बाँधे स्याम |
मन-मोहन बाहिर ही छाँड़े, आपु गई गृह-काम ||
दह्यौ मथति, मुख तैं कछु बकरति, गारी दे लै नाम |
घर-घर डोलत माखन चोरत, षट-रस मेरैं धाम ||
ब्रज के लरिकनि मारि भजत हैं, जाहु तुमहु बलराम |
सूरि स्याम ऊखल सौं बाधै, निरखहिं ब्रजकी बाम ||
यशोदाजी ने श्यामसुन्दर को ऊखल में बाँध दिया है | मनमोहन को बाहर (आँगनमें)
ही छोड़कर स्वयं घर के कार्यमें लग गयी हैं | दही मथती जाती हैं और मुखसे नाम
ले -लेकर गाली देती हुई कुछ बकती भी जाती हैं कि `यह घर-घर मक्खन चुराता घूमता है
जब कि मेरे घरमें छहों रस (भरे) हैं | ब्रजके लड़कोंको मारकर भाग जाता है | (इसे
नहीं छोड़ूँगी|) बलराम! तुम भी चले जाओ |' सूरदासजी कहते हैं कि व्रजकी गोपियाँ
श्यामसुन्दरको ऊखल बँधा देख रही हैं |
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See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217