ब्रज-जुबती स्यामहि उर लावतिं |
बारंबार निरखि कोमल तनु, कर जोरतिं, बिधि कौं जु मनावतिं ||
कैसैं बचे अगम तरु कैं तर, मुख चूमतिं, यह कहि पछितावतिं |
उरहन लै आवतिं जिहिं कारन, सो सुख फल पूरन करि पावतिं ||
सुनौ महरि, इन कौं तुम बाँधति, भुज गहि बंधन-चिह्न दिखावतिं |
सूरदास प्रभु अति रति-नागर, गोपी हरषि हृदय लपटावतिं ||
भावार्थ :--
व्रजकी गोपियाँ श्यामसुन्दरको हृदयस लगा रही हैं | बार-बार उनके सुकुमार शरीरको
देखकर हाथ जोड़कर दैवको मनाती हैं (कि यह सकुशल रहे)| `बड़े विकट वृक्षोंके नीचे
पड़कर ये कैसे बचे ? ' यह सोचकर मुख चूमती हैं तथा यह कहते हुए पश्चाताप करती
हैं कि-`जिसके लिये हम उलाहना लेकर आती थीं, उस सुखका फल पूर्णरूपमें हम पा रही
हैं व्रजरानी ! सुनो, तुम इन्हें (इतने सुकुमारको) बाँधती हो ?' (यह कहकर) हाथ पकड़
कर बन्धनके चिह्न (रस्सीके निशान) दिखलाती हैं | सूरदासजी कहते हैं कि मेरे स्वामी
क्रीड़ा करनेमें अत्यन्त चतुर हैं (उन्होंने अपनी इस क्रीड़ासे सबको मोहित कर लिया
है ) गोपियाँ हर्षित होकर उन्हें हृदयसे लिपटा रही हैं |
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217