तबहिं स्याम इक बुद्धि उपाई |
जुवती गई घरनि सब अपनैं, गृह-कारज जननी अटकाई ||
आपु गए जमलार्जुन-तरु तर, परसत पात उठे झहराई |
दिए गिराइ धरनि दोऊ तरु, सुत कुबेर के प्रगटे आई ||
दोउ कर जोरि करत दोउ अस्तुति, चारि भुजा तिन्ह प्रगट दिखाई |
सूर धन्य ब्रज जनम लियौ हरि, धरनि की आपदा नसाई ||
भावार्थ :-- उसी समय श्यामसुन्दरने एक उपाय सोच लिया | गोपियाँ तो सब अपने अपने
घर चली गयीं और मैया घरके काममें फँस गयी | (अवसर पाकर ऊखल घसीटते) स्वयं यमलार्जुन
के वृक्षोंके नीचे पहुँच गये | इनके छूते ही (वृक्षोंके) पत्ते हिल उठे, श्यामने
दोनों वृक्षोंको पृथ्वीपर गिरा दिया, उनसे कुबेरके पुत्र (नलकूबर और मणिग्रीव)
प्रकट हो गये | दोनों हाथ जोड़कर वे दोनों स्तुति करने लगे, श्यामने चतुर्भुजरूप
प्रकट करके उन्हें दर्शन दिया | सूरदासजी (केशब्दोंमें कुबेरपुत्र) कहते हैं कि यह
व्रज धन्य है जहाँ श्रीहरिने अवतार लिया और पृथ्वीकी आपत्ति (भार) दूर की ?
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See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217