मुंशी प्रेमचंद

वरदान

25 विदाई

पेज- 76

बालाजी ने घर पहुचंकर समाचार-पत्र खोला, मुख पीला हो गया, और सकरुण हृदय से एक ठण्डी सांस निकल आयी। धर्मसिंह ने घबराकर पूछा– कुशल तो है ?
बालाजी–सदिया में नदी का बांध फट गया बस साहस मनुष्य गृहहीन हो गये।
धर्मसिंह- ओ हो।
बालाजी– सहस्रों मनुष्य प्रवाह की भेंट हो गये। सारा नगर नष्ट हो गया। घरों की छतों पर नावें चल रही हैं। भारत सभा के लोग पहुच गयें हैं और यथा  शक्ति लोगों की रक्षा कर रहें है, किन्तु उनकी संख्या बहुत कम हैं।
धर्मसिंह(सजलनयन होकर) हे इश्वर। तू ही इन अनाथों को नाथ हैं। गयीं। तीन घण्टे तक निरन्तर मूसलाधार पानी बरसता रहा। सोलह इंच पानी गिरा। नगर के उतरीय विभाग में सारा नगर एकत्र हैं। न रहने कों गृह है, न खाने को अन्न। शव की राशियां लगी हुई हैं बहुत से लोग भूखे मर जाते है। लोगों के विलाप और करुणाक्रन्दन से कलेजा मुंह को आता हैं। सब उत्पात–पीडित मनुष्य बालाजी को बुलाने की रट लगा रह हैं।  उनका विचार यह है कि मेरे पहुंचने से उनके दु:ख दूर हो जायंगे।
कुछ काल तक बालाजी ध्यान में मग्न रहें, तत्पश्चात बोले–मेरा जाना आवश्यक है। मैं तुरंत जाऊंगा। आप सदियों की , ‘भारत सभा’ की तार दे दीजिये कि वह इस कार्य में मेरी सहायता करने को उद्यत् रहें।
राजा साहब ने सविनय निवेदन किया – आज्ञा हो तो मैं चलूं ?
बालाजी – मैं पहुंचकर आपको सूचना दूँगा। मेरे विचार में आपके जाने की कोई आवश्यकता न होगी।
धर्मसिंह -उतम होता कि आप प्रात:काल ही जाते।
बालाजी – नहीं। मुझे यहॉँ एक क्षण भी ठहरना कठिन जान पड़ता है। अभी मुझे वहां तक पहुचंने में कई दिन लगेंगें।
पल – भर में नगर में ये समाचार फैल गये कि सदियों में बाढ आ गयी और बालाजी इस समय वहां आ रहें हैं। यह सुनते ही सहस्रों मनुष्य बालाजी को पहुंचाने के लिए निकल पड़े। नौ बजते–बजते द्वार पर पचीस सहस्र मनुष्यों क समुदाय एकत्र् हो गया। सदिया की दुर्घटना प्रत्येक मनुष्य के मुख पर थी लोग उन आपति–पीडित मनुष्यों की दशा पर सहानुभूति  और चिन्ता प्रकाशित कर रहे थे। सैकडों मनुष्य बालाजी के संग जाने को कटिबद्व हुए। सदियावालों की सहायता के लिए एक फण्ड खोलने का परामर्श होने लगा।

 

 

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