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मुंशी प्रेमचंद
वरदान
25 विदाई
पेज- 74
इस प्रकार शनै: शनै लोग राजघाट पर एकत्र हुए। यहाँ गोशाला का एक गगनस्पर्शी विशाल भवन स्वागत के लिये खड़ा था। आँगन में मखमल का बिछावन बिछा हुआ था। गृहद्वार और स्तंभ फूल-पत्तियों से सुसज्जित खड़े थे। भवन के भीतर एक सहस गायें बंधी हुई थीं। बालाजी ने अपने हाथों से उनकी नॉँदों में खली-भूसा डाला। उन्हें प्यार से थपकियॉँ दी। एक विस्तृत गृह मे संगमर का अष्टभुज कुण्ड बना हुआ था। वह दूध से परिवूर्ण था। बालाजी ने एक चुल्लू दूध लेकर नेत्रों से लगाया और पान किया।
अभी आँगन में लोग शान्ति से बैठने भी न पाये थे कई मनुष्य दौड़े हुए आये और बोल-पण्डित बदलू शास्त्री, सेठ उत्तमचन्द्र और लाला माखनलाल बाहर खड़े कोलाहल मचा रहे हैं और कहते है। कि हमा को बालाजी से दो-दो बाते कर लेने दो। बदलू शास्त्री काशी के विख्यात पंण्डित थे। सुन्दर चन्द्र-तिलक लगाते, हरी बनात का अंगरखा परिधान करते औश्र बसन्ती पगड़ी बाँधत थे। उत्तमचन्द्र और माखनलाल दोनों नगर के धनी और लक्षाधीश मनुष्ये थे। उपाधि के लिए सहस्रों व्यय करते और मुख्य पदाधिकारियों का सम्मान और सत्कार करना अपना प्रधान कर्त्तव्य जानते थे। इन महापुरुषों का नगर के मनुष्यों पर बड़ा दबवा था। बदलू शास्त्री जब कभी शास्त्रीर्थ करते, तो नि:संदेह प्रतिवादी की पराजय होती। विशेषकर काशी के पण्डे और प्राग्वाल तथा इसी पन्थ के अन्य धामिर्क्ग्झ तो उनके पसीने की जगह रुधिर बहाने का उद्यत रहते थे। शास्त्री जी काशी मे हिन्दू धर्म के रक्षक और महान् स्तम्भ प्रसिद्व थे। उत्मचन्द्र और माखनलाल भी धार्मिक उत्साह की मूर्ति थे। ये लोग बहुत दिनों से बालाजी से शास्त्रार्थ करने का अवसर ढूंढ रहे थे। आज उनका मनोरथ पूरा हुआ। पंडों और प्राग्वालों का एक दल लिये आ पहुँचे।
बालाजी ने इन महात्मा के आने का समाचार सुना तो बाहर निकल आये। परन्तु यहाँ की दशा विचित्र पायी। उभय पक्ष के लोग लाठियाँ सँभाले अँगरखे की बाँहें चढाये गुथने का उद्यत थे। शास्त्रीजी प्राग्वालों को भिड़ने के लिये ललकार रहे थे और सेठजी उच्च स्वर से कह रहे थे कि इन शूद्रों की धज्जियॉँ उड़ा दो अभियोग चलेगा तो देखा जाएगा। तुम्हार बाल-बॉँका न होने पायेगा। माखनलाल साहब गला फाड़-फाड़कर चिल्लाते थे कि निकल आये जिसे कुछ अभिमान हो। प्रत्येक को सब्जबाग दिखा दूँगा। बालाजी ने जब यह रंग देखा तो राजा धर्मसिंह से बोले-आप बदलू शास्त्री को जाकर समझा दीजिये कि वह इस दुष्टता को त्याग दें, अन्यथा दोनों पक्षवालों की हानि होगी और जगत में उपहास होगा सो अलग।
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