मुंशी प्रेमचंद - गोदान

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गोदान

भाग-22

पेज-235

रायसाहब आशा बाँधे हुए कल आने का वादा करके ज्यों ही निकले कि खन्ना ने अंदर जा कर गोविंदी को आड़े हाथों लिया - तुमने इस व्यायामशाला की नींव रखना क्यों स्वीकार किया?

गोविंदी कैसे कहे कि यह सम्मान पा कर वह मन में कितनी प्रसन्न हो रही थी। उस अवसर के लिए कितने मनोयोग से अपना भाषण लिख रही थी और कितनी ओजभरी कविता रची थी। उसने दिल में समझा था, यह प्रस्ताव स्वीकार करके वह खन्ना को प्रसन्न कर देगी। उसका सम्मान तो उसके पति का ही सम्मान है। खन्ना को इसमें कोई आपत्ति हो सकती है, इसकी उसने कल्पना भी न की थी। इधर कई दिन से पति को कुछ सदय देख कर उसका मन बढ़ने लगा था। वह अपने भाषण से, और अपनी कविता से लोगों को मुग्ध कर देने का स्वप्न देख रही थी।

यह प्रश्न सुना और खन्ना की मुद्रा देखी, तो उसकी छाती धक-धक करने लगी। अपराधी की भाँति बोली - डाक्टर मेहता ने आग्रह किया, तो मैंने स्वीकार कर लिया।

'डाक्टर मेहता तुम्हें कुएँ में गिरने को कहें, तो शायद इतनी खुशी से न तैयार होगी!'

गोविंदी की जबान बंद।

'तुम्हें जब ईश्वर ने बुद्धि नहीं दी, तो क्यों मुझसे नहीं पूछ लिया? मेहता और मालती दोनों यह चाल चल कर मुझसे दो-चार हजार ऐंठने की फिक्र में हैं। और मैंने ठान लिया है कि कौड़ी भी न दूँगा। तुम आज ही मेहता को इनकारी खत लिख दो।'

गोविंदी ने एक क्षण सोच कर कहा - तो तुम्हीं लिख दो न।

'मैं क्यों लिखूँ? बात की तुमने, लिखूँ मैं?'

'डाक्टर साहब कारण पूछेंगे, तो क्या बताऊँगी?'

'बताना अपना सिर और क्या! मैं इस व्यभिचारशाला को एक धेला भी नहीं देना चाहता।'

'तो तुम्हें देने को कौन कहता है?'

खन्ना ने होंठ चबा कर कहा - कैसी बेसमझों की-सी बातें करती हो? तुम वहाँ नींव रखोगी और कुछ दोगी नहीं, तो संसार क्या कहेगा?

गोविंदी ने जैसे संगीन की नोक पर कहा - अच्छी बात है, लिख दूँगी।

'आज ही लिखना होगा।'

'कह तो दिया लिखूँगी।'

 

 

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