मुंशी प्रेमचंद - गोदान

premchand godan,premchand,best novel in hindi, best literature, sarveshreshth story

गोदान

भाग-15

पेज-148

मिसेज खन्ना ने आँखें झुका कर कहा - अच्छा था, बहुत अच्छा, मगर अभी आप अविवाहित हैं, तभी नारियाँ देवियाँ हैं, श्रेष्ठ हैं, कर्णधार हैं। विवाह कर लीजिए तो पूछूँगी, अब नारियाँ क्या हैं? और विवाह आपको करना पड़ेगा, क्योंकि आप विवाह से मुँह चुराने वाले मर्दों को कायर कह चुके हैं।

मेहता हँसे - उसी के लिए तो जमीन तैयार कर रहा हूँ।

'मिस मालती से जोड़ा भी अच्छा है।'

'शर्त यही है कि वह कुछ दिन आपके चरणों में बैठ कर आपसे नारी-धर्म सीखें।'

'वही स्वार्थी पुरुषों की बात! आपने पुरुष-कर्तव्य सीख लिया है?'

'यही सोच रहा हूँ किससे सीखूँ।'

'मिस्टर खन्ना आपको बहुत अच्छी तरह सिखा सकते हैं। '

मेहता ने कहकहा मारा - नहीं, मैं पुरुष-कर्तव्य भी आप ही से सीखूँगा।

'अच्छी बात है, मुझी से सीखिए। पहली बात यही है कि भूल जाइए कि नारी श्रेष्ठ है और सारी जिम्मेदारी उसी पर है, श्रेष्ठ पुरुष है और उसी पर गृहस्थी का सारा भार है। नारी में सेवा और संयम और कर्तव्य सब कुछ वही पैदा कर सकता है, अगर उसमें इन बातों का अभाव है तो नारी में भी अभाव रहेगा। नारियों में आज जो यह विद्रोह है, इसका कारण पुरुष का इन गुणों से शून्य हो जाना है।'

मिर्जा साहब ने आ कर मेहता को गोद में उठा लिया और बोले - मुबारक!

मेहता ने प्रश्न की आँखों से देखा - आपको मेरी तकरीर पसंद आई?

'तकरीर तो खैर जैसी थी वैसी थी, मगर कामयाब खूब रही। आपने परी को शीशे में उतार लिया। अपनी तकदीर सराहिए कि जिसने आज तक किसी को मुँह नहीं लगाया, वह आपका कलमा पढ़ रही है।'

 

 

पिछला पृष्ठ गोदान अगला पृष्ठ
प्रेमचंद साहित्य का मुख्यपृष्ट हिन्दी साहित्य का मुख्यपृष्ट

 

 

Kamasutra in Hindi

top